गणेश जी रखने का यह हे सही कारण
गणेश जी रखने या विराज मन करने का अलग अलग मान्यताएं है।

पुराणों में सुनने को मिलता है
एक बार मां पार्वती स्नान कर रही होती है तभी वो अपनी मैल से एक मूर्ति का निर्माण करती है।

मूर्ति निर्माण के बाद मूर्ति जीवित हो जाती है जो एक बालक का रूप होता है।

जिसे फिर माता पार्वती आदेश देती है कि तुम मेरे स्नान करते तक द्वार पर पहरा दो

और मेरे आदेश के बिना किसी को भी अंदर आने मन देना।
फिर वह बालक माता की आज्ञा मन के द्वार पर खड़ा रहता हैं।

तभी वहां भगवान शिव जी आ जाते है और अंदर जाने की कोशिश करते है लेकिन वह बालक उन्हें अंदर जाने नहीं देता ।

उन दोनों के बीच बहस छिड़ जाता है।
फिर सभी कैलाशी वाला वहां आ जाते है तभी शिव जी बोलते है
अपने दासों से इस बच्चे को यह से हटाओ फिर दे सब एक एक के जाते है
परन्तु वहा बालक हटने के लिए तैयार नहीं था।

और एक एक कर सब को हर देता है अभी शिव जी आत्याधिक क्रोधित हो जाते है
और गुस्सा में अपने त्रिशूल से उस बालक के सिर को धर हे एक ही बार में अलग कर देते है।

फिर मां पार्वती बाहर आकर यह दृश्य देख बेहद क्रोधित हो जाती है

और फिर पूरी सृष्टि को नष्ट करने की बात करती हैं
तभी शिव जी अपने भक्तों नंदी और उनके साथी को जाव उत्तर दिशा की ओर जाना और जो भी जीव दिखे उसका सिर ले आना ।
फिर नंदी ओ नदी गण उत्तर दिशा की ओर निकल जाते है तभी उनकी नजर हाथी के बच्चे बढ़ती है और ये देख वे लोग सोच में पढ़ जीते है ये तो हाथी का बच्चा है इनका सिर कैसे ले कर जाए ।
परन्तु भगवान का आदेश था कि तो भी जीव उत्तर दिशा की ओर पहले दिखे यही का सिर लना है।
- उसका सिर ले कर आव

सिर ल खा भगवान हो दे देते है फिर अभी अचंभित रहते है ये तो हाथी के बच्चे का सिर है इस बालक के सिर की कैसे जगह लगेगा।
फिर भगवान सिर लगा देते है, और बालक को जीवित कर देते है।
लेकिन उधर मां शांत होने वाली नहीं थी
तभी भगवान शिव माता पार्वती को शांत करने के लिए उस बालक का नाम करण करते है।
बालक का नाम लम्बोदर गणेश रखते है और साथ ही माता को भी शांत करना था।
तभी भगवान ने माता को शांत करने के लिए गणेश का नाम करने के बाद उनका एक स्थान भी बना दिया।
भगवान ने गणेश जी को सभी देवताओं से सबसे ऊपर रखा ओ बोले आज से जहां भी पूजा आर्चना हो सबसे पहले गणेश जी की पूजा होगी।
तभी से उनकी पूजा अर्चना पहले की जाती है।
तभी से उनका नाम विघ्नहरण गज राज , गणेश लम्बोद पड़ा।
और उन्हें तभी से भिन्न भिन्न नामो से भी जाना जाता है।